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व्रत और त्योहार भारतीय पर्व विराट संस्कृति के परिचायक हैं नि:संदेह भारतीय व्रत एवं त्योहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। हम भारतीय, विश्व की प्राचीनतम संस्कृति के संवाहक हैं जो आदि से है और अंत तक रहेगी। सनातन संस्कृति में जहां धर्म और अध्यात्म बृहद रूप में विद्यमान है वहीं बिना पर्वों के हमारी संस्कृति पूर्ण नहीं होती है। भारतीय संस्कृति को विराट एवं विशेष रूप देने में और इसे जीवंत रखने में पर्वों की बहुत बड़ी भूमिका है। भारत के पर्व न केवल धर्म बल्कि हमारे सामाजिक जीवन का भी विशिष्ट अंग हैं। वर्ष भर में शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब यहां पर्व न हो। यहां तो प्रतिदिन पर्व हैं। ये पर्व हमारे आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा आदि को तो दिखाते ही हैं साथ ही इतने विशाल राष्ट्र में एक मत से मिलजुल कर पर्वों को मनाना भारत की एकता और अखंडता को भी दर्शाता है। हमारे पर्वों के उद्भव या विकास को यदि देखें तो प्रत्येक पर्व के पीछे एक पौराणिक आख्यान अवश्य होता है अर्थात यहां कोई भी पर्व मनगढंत या किसी के मन की उत्पत्ति नहीं है। सतयुग से लेकर वर्तमान तक जो भी दैविक, धार्मिक या आध्यात्मिक घटनायें प्रत्यक्ष हुईं उन्हीं से हमारे पर्वों का जन्म हुआ है जिससे प्रत्येक पर्व में एक विशिष्टता छिपी होती है हमारे सभी व्रत-त्योहार चाहे वह करवाचौथ का व्रत हो या दिवाली पर्व, कहीं न कहीं वे पौराणिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं और उनका वैज्ञानिक पक्ष भी नकारा नहीं जा सकता। वर्तमान में भले ही पाश्चात्य सभ्यता के कारण हम इस पर्व को भूल गये हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नव-संवत का आरंभ होता है और यही भारत का वास्तविक नया वर्ष होता है। इसके अलावा इस दिन का धार्मिक महत्व भी कम नहीं है।

हिन्दू जन मानस की आवश्यकता तथा उनकी रुचि को ध्यान में रखते हुए इस यह वेबसाइट एँव बलाँग वेब पोर्टल मैने अपना ज्ञान बढाने एंव जन सामान्य कि जानकारी व मार्गदर्शन के लिये बनाया है। जिसका उद्देश्य पूर्णत:अव्यवसायिक है।

लेखक एवं संकलन कर्ता: पेपसिंह राठौड़ तोगावास


Sunday 1 March 2015

व्रत और त्योहार


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